यह भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था,कोलकाता,भारत का सरकारी वेबसाइट है।

108 वें I S C को जनवरी 3-7, 2022 में स्थानांतरित कर दिया गया

परिचय

उत्पत्ति ग्रन्थ

भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था (ISCA) की उत्पत्ति दो ब्रिाटिश रसायनज्ञ यथा प्राध्यापक जे.एल साइमनसेन और प्राध्यापक पी.एस मैकमोहन के दूरदर्शिता और पहल से हुई।यह उनके मन में आया कि भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जा सकता है यदि अनुसंधान कर्मियों द्वारा एक वार्षिक बैठक ब्रिाटिश संस्था के पथ पर विज्ञान के तरक्क़ी के लिए इन्तज़ाम किया जाएं।


संस्था का गठन निम्नलिखित उद्देश्यों से किया गया :
(i) भारत में विज्ञान को उन्नत करना एवं उसे बढ़ावा देना,
(ii) भारत में उपयुक्त स्थान पर वार्षिक सम्मेलन का आयोजन करना,
(iii) कार्यवाहियों, जर्नल एवं कार्य - विवरण इत्यादि को प्रकाशित करना,
(iv) विज्ञान का प्रचार करना।


कांग्रेस की पहली बैठक एशियटिक सोसाइटी,कोलकाता के परिसर में 15 से 17 जनवरी,1914 तक हुई जिसके महाध्यक्ष कलकत्ता वि•ाविद्यालय के तत्कालीन कुलपति माननीय न्यायमूर्ति सर आशुतोष मुखर्जी थे।भारत एवं विदेश के विभिन्न भागों से आए एक सौ पाँच वैज्ञानिकों ने बैठक में भाग लिया और छह अनुभागीय अध्यक्षों के अधीन वनस्पतिविज्ञान,रसायनविज्ञान,नृजातिविज्ञान,भूविज्ञान,भौतिकविज्ञान एवं प्राणिविज्ञान अनुभागों में विभाजित 35 लेख प्रस्तुत किए गए।


प्रारंभ में मात्र 105 सदस्यों वाली भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था में अब सदस्यों की संख्या बढ़कर लगभग 10,000 हो गई है।प्रस्तुति के लिए प्राप्त लेखों की संख्या 35 से बढ़कर 1000 हो गई है।2000 तक 16 अनुभागें थीं, 2 समितियाँ और 6 जनसभाएँ थीं,यथा अनुभागें - कृषि विज्ञान,मानव विज्ञान और पुरातत्वविज्ञान,जैव रसायन,जैव भौतिकी और आण्विक जैविकी, पादप विज्ञान,रसायन विज्ञान,कंप्यूटर विज्ञान,पृथ्वीतंत्र विज्ञान,अभियांत्रिकी,पदार्थ विज्ञान,गणितशास्त्र,आयुर्विज्ञान और पशु - चिकित्सा,भौतिक विज्ञान,शरीर - क्रिया विज्ञान,मनोविज्ञान और शिक्षाशास्त्र,सांख्यिकी,जैवविज्ञान,कीटविज्ञान एवं मात्स्यिकी,समितियाँ-गार्हस्थ्य-विज्ञान,विज्ञान और समाज,जनसभाएँ -संचार एवं सूचना विज्ञान,पर्यावरण विज्ञान ,न्यायालयीय विज्ञान,विज्ञान शिक्षा,विद्यालयी छात्रों के लिए विज्ञान और महिलाएँ और विज्ञान।


अभी 14 अनुभागें हैं यथा कृषि एवं वानिकी,पशु,पशुचिकित्सा एवं मात्स्यिकी,मानव विज्ञान एवं व्यवहार विज्ञान (पुरातत्व विज्ञान,मनोविज्ञान एवं शिक्षाशास्त्र सहित),रसायन विज्ञान,पृथ्वीतंत्र विज्ञान,अभियांत्रिकी,पर्यावरण विज्ञान,सूचना एवं संचार विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी (कंप्यूटर विज्ञान सहित),पदार्थ विज्ञान,गणितशास्त्र (सांख्यिकी सहित),आयुर्विज्ञान (शरीर क्रिया-विज्ञान सहित),नव जीवविज्ञान (जैव रसायन,जैव भौतिकी,आण्विक जैविकी एवं जैव प्रौद्योगिकी सहित),भौतिक विज्ञान,पादप विज्ञान और एक समिति विज्ञान और समाज


रजत जयंती

विज्ञान कांग्रेस का रजत जयंती सत्र कोलकाता में सन् 1938 में नेलसन के लार्ड रथरफोर्ड के अध्यक्षता में होना था लेकिन उनकी अकस्मात मृत्यु के कारण सर जेमस जिन्स ने अध्यक्षता की।भारतीय विज्ञान कांग्रेस के इस रजत जयंती सत्र में ही सर्वप्रथम विदेशी वैज्ञानिकों ने भाग लिए।


स्वर्ण जयंती

विज्ञान कांग्रेस ने अक्तूबर 1963 में दिल्ली में प्रो0 डी.एस.कोठारी की अध्यक्षता में स्वर्ण जयंती मनाया।इस सुअवसर में दो विशेष प्रकाशनों को प्रकाशित की गई :(1) ए शर्ट हिस्ट्री ऑफ़ दि इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन और (2)फिफटी इयर्स ऑफ़ साइंस इन इंडिया (12 खंडों में,प्रत्येक खंड में विज्ञान के विशिष्ट शाखा के पुनरवलोकन मौजूद हैं)।


हीरक जयंती

3-9 जनवरी,1973 में चंडीगढ़ में विज्ञान कांग्रेस का हीरक जयंती डॉ0 एस.भगवनतम के अध्यक्षता में मनाया गया।इस सुअवसर पर दो विशेष प्रकाशन लाया गया :(1) ए डिकेड (1963-72) इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन (विथ लाइफ - स्केचेस ऑफ़ जेनेरल प्रेसिडेन्टस) और (2) ए डिकेड (1963-72) ऑफ़ साइंस इन इंडिया (अनुभाग के प्रकार से)


प्लेटिनम जयंती

भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था अपना 75 वाँ वर्ष जिसे प्रचलित रूप में प्लेटिनम जयंती कहा जाता है वह सन् 1988 में प्रो0 सी.एन.आर.राव की अध्यक्षता में मनाया।इस अवसर को विचारकर,एक विशेष विवरणिका,जिसका शीर्षक था ""इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन -ग्रोथ एंड एक्टिविटिस'' जिसमें वर्षों से संस्था में हो रहे कार्यक्रमों की विशिष्टताओं का उल्लेख था को प्रकाशित किया गया।मुख्य कार्यक्रम थे:(i) प्लेटिनम जयंती के सुअवसर पर विशेष प्रकाशनों को लाना (ii) संस्था के महाध्यक्षों को फलक भेंट करना। (iii) विज्ञान कांग्रेस के वार्षिक सत्र में प्रत्येक अनुभाग में प्लेटिनम जयंती व्याख्यान के आयोजन की स्थापना करना और (iv) भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था के हाल के कार्यकलापों को विस्तार करना और उसके विविधताओं को वैज्ञानिक मनोदशा में उत्पन्न करना और विज्ञान को लोकप्रिय बनाना।


शताब्दी सत्र

भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था ने 2 जून,2012 में अपने सैकड़ों वर्ष की स्वीकृति मनाई और भारत के माननीय प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में 2013 में कोलकाता में शताब्दी सत्र आयोजित किया गया।


इस अवसर पर :


भारत में वरिष्ठ वैज्ञानिकों को सम्मान और प्रोत्साहित करने के लिए आशुतोष मुखर्जी फैलोशिप की दस संख्या शुरू की गई थी।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अभिनव नीति 2013 जारी किया गया था।

भारत डाक टिकटों को शताब्दी समारोह के लिए डाक विभाग द्वारा जारी किया गया था।

"भारतीय विज्ञान कांग्रेस राष्ट्रव्यापी उत्सव का शताब्दी सत्र" नामक एक विशेष पुस्तक प्रकाशित की गई ताकि भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था की पहलों के बारे में जानकारी भारत में अपने विंभिन्न शाखाओं के माध्यम से शताब्दी समारोह के बारे में जानकारी प्रस्तुत की जा सके।


विदेशी वैज्ञानिकों का भाग लेना

भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था का 34 वाँ वार्षिक सत्र दिल्ली में 3-8 जनवरी, 1947 में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित हुर्इं।पंडित नेहरू का विज्ञान कांग्रेस के प्रति वैयक्तिक आग्रह इसके बाद भी बना रहा और मुश्किल से ऐसा कोई सत्र रहा होगा जिसमें वे अनुपस्थित रहें।वे देश में विशेषकर युवा वर्ग में एक वैज्ञानिक वातावरण का विकास चाहते थे इसलिए उन्होंने कांग्रेस के कार्यकलापों को अत्यधिक सम्पन्न किया।सन् 1947 के बाद विज्ञान कांग्रेस के इस कार्यक्रम में विदेशी समाजों और शैक्षणिक संस्थाओं से आमंत्रित प्रतिनिधित्व को भी सम्मिलित कर लिया गया।भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सहायता से ही यह प्रवृत्ति अभी भी जारी है।


विदेशी वैज्ञानिक शैक्षिक/संस्थाओं का प्रभाव

भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था का स्वतंत्रता के पश्चात ब्रिाटिश विज्ञान - उन्नति संस्था,अमेरिकी विज्ञान उन्नति संस्था,फ्रांसीसी विज्ञान अकादमी,बांग्लादेश विज्ञान अकादमी,श्रीलंका विज्ञान उन्नति संस्था,बीजिंग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्था जैसी विभिन्न विदेशी वैज्ञानिक अकादमियों/संस्थाओं तथा अन्य संस्थाओं से सक्रिय अंत:संबंध रहा है ताकि पारस्परिक हित वाले विषयों पर उपयोगी विचार - विमर्श हो सके।


केंद्रीय विषय का परिचय

वर्ष 1976 में कांग्रेस के दौरान विचार - विमर्श के स्तर पर महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला।कुछ समय से यह महसूस किया जा रहा था कि व्यापक आधार वाले वैज्ञानिकों के इस सम्मेलन में वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय प्रभाव वाले राष्ट्रीय मुद्दों को भी लिया जाए।भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था के तत्कालीन महाध्यक्ष डॉ0 एम.एस.स्वामीनाथन ने 1976 में राष्ट्रीय प्रासंगिकता के केंद्रीय थीम की संकल्पना का सूत्रपात किया जिसपर अब वार्षिक अधिवेशन के दौरान प्रत्येक कांग्रेस में चर्चा होती है।इसके अतिरिक्त,केंद्रीय थीम के विभिन्न पहलुओं पर कई पूर्ण अधिवेशन आयोजित किए जाते हैं जिनमें वैज्ञानिकों एवं प्रौद्योगिकीविदों के साथ - साथ नीति - निर्माता व प्रशासक परस्पर विचार - विमर्श करते हैं।इस तरह से संस्था ऐसा मंच बन गई है जहाँ विभिन्न शाखाओं एवं जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के लोग केंद्रीय थीम पर चर्चा में भाग लेते हैं।


कार्यबल

दूसरी महत्वपूर्ण सफलता 1980 में मिली जब भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने सचिव की अध्यक्षता में स्थायी कार्यदल गठित किया जिसमें संस्था के उन प्रतिनिधियों तथा विभिन्न एजेंसियों एवं स्वैच्छिक संगठनों के उन प्रमुखों को शामिल किया गया जो केंद्रीय थीम संबंधी विभिन्न संस्तुतियों पर अनुवर्ती कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होंगे।पूर्ववर्ती विज्ञान कांग्रेस में की गई संस्तुतियों संबंधी अनुवर्ती कार्रवाई पर प्रति वर्ष विज्ञान कांग्रेस के दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित सामान्य अधिवेशन में चर्चा होती है।इस तरह से भारतीय विज्ञान कांग्रेस संस्था सामान्यत: विज्ञान एवं विशिष्टत: राष्ट्रीय विज्ञान नीति के विकास में योगदान कर रही है।


भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक व्यावसायिक संस्था

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